दुनियाभर के चुनावों में बदलाव की दस्तक साफ-साफ सुनी जा रही है. ब्रिटेन में भी सरकार बदल गई. वहां लेबर पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. किएर स्टार्मर ब्रिटेन की कमान संभालने जा रहे हैं. पिछले 14 सालों से ब्रिटेन में कंजर्वेटिव पार्टी का शासन था. इस दौरान भारत के साथ ब्रिटेन के रिश्ते खूब फले-फूले लेकिन परिवर्तन का नारा देकर चुनाव जीतने वाले किएर स्टार्मर की जीत का दोनों देशों के रिश्तों पर क्या असर होगा? ब्रिटेन में होने वाला ये परिवर्तन क्या भारत के पक्ष में है या फिर खालिस्तान और कश्मीर जैसे मुद्दों पर ब्रिटेन के साथ हमारे रिश्तों में तनाव बढ़ जाएगा.

10 डाउनिंग स्ट्रीट, वो जगह जो सन 1735 से ब्रिटिश प्रधानमंत्री का आधिकारिक सरकारी निवास है. इस काले दरवाजे के पीछे पिछले 275 सालों से ब्रिटेन और दुनिया को प्रभावित करने वाले फैसले लिए गए हैं. अब सवाल ये है कि ब्रिटेन में किएर स्टार्मर की प्रचंड जीत हिंदुस्तान के लिए कैसी है? परिवर्तन के नारे के साथ सत्ता में आए किएर स्टार्मर भारत के लिए कैसे रहेंगे? क्या उनका रुख भारत को लेकर ऋषि सुनक से अलग होगा, जो चुनाव हार गए हैं.

कई भारतीय चेहरों ने जीता चुनाव

देश पहले और पार्टी बाद में का नारा देने वाले किएर स्टार्मर के 400 पार जाने से ब्रिटेन में उनकी पार्टी के हौसले बुलंद हैं. चुनाव जीतने वालों में कई भारतीय चेहरे भी शामिल हैं, जिसमें प्रीति कौर गिल का चेहरा भारत से रिश्तों के लिहाज से काफी अहम साबित हो सकता है. ब्रिटेन की पहली सिख महिला सांसद लेकिन इनकी असली पहचान भारत विरोध से जुड़ी है, जो समय-समय पर भारत के खिलाफ जहर उगलती रहती हैं. 

साल की शुरुआत में लेबर पार्टी से चुनाव जीतीं प्रीति कौर गिल ने ब्रिटिश संसद के निचले सदन में ब्रिटेन में रहने वाले सिखों का मुद्दा उठाया और कहा था कि भारतीय एजेंट्स का टारगेट ब्रिटेन में रहने वाले सिख हैं. ब्रिटेन में रह रहे कई सिख उनकी हिट लिस्ट में हैं. उन्होंने सवाल उठाया कि ब्रिटिश सरकार सिखों की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही है. उन्होंने स्पीच में ऑस्ट्रेलिया कनाडा, न्यूजीलैंड, अमेरिका और UK के इंटेलिजेंस अलायंस का जिक्र भी किया. प्रीति कौर गिल ने ये सब बातें चुनाव से पहले कही थीं. लेकिन तब उनकी पार्टी की सरकार नहीं थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. 

खालिस्तान पर नई सरकार का रुख क्या होगा?

14 साल बाद लेबर पार्टी का प्रधानमंत्री 10 डाउनिंग स्ट्रीट में रहेगा. इससे पहले लेबर पार्टी साल 2010 में जीती थी. लेकिन उसके बाद कंजर्वेटिव पार्टी के ही प्रधानमंत्री बनते रहे. इस दौरान भारत और ब्रिटेन के रिश्ते खूब बढ़े. लेकिन 10 डाउनिंग स्ट्रीट में लेबर पार्टी का प्रधानमंत्री आने से खालिस्तान को लेकर नई सरकार का क्या रुख रहेगा. इस पर भारत की नजर रहेगी.

पिछले साल मार्च के महीने में लंदन में भारतीय उच्चायोग पर 50 खालिस्तान समर्थकों ने हमला किया था. इस घटना का असर दोनों देशों के रिश्तों पर भी पड़ा था. ऐसे में ब्रिटेन की सत्ताधारी पार्टी में खालिस्तान समर्थकों का बोलबाला क्या खालिस्तान समर्थकों का हौसला बढ़ाने वाला साबित नहीं होगा? क्योंकि सिख लेबर काउंसलर परबिंदर कौर पहले ही खालिस्तान समर्थक पोस्ट साझा करने के लिए पार्टी की जांच के घेरे में हैं जिसमें भारत में नेताओं की हत्या करने वाले आतंकवादी समूहों और आतंकवादियों का भी समर्थन किया गया था.

14 साल में पूरी तरह बदल चुकी है दुनिया

किएर स्टार्मर ने लेबर पार्टी को जिताने के लिए अपनी पार्टी की नीतियों पर दोबारा विचार किया. उन्हें बदला. सवाल ये है कि क्या विदेश नीति को लेकर भी किएर स्टार्मर ऐसा ही करेंगे. क्योंकि पिछले 14 सालों में दुनिया काफी कुछ बदल चुकी है. भारत एक उभरती शक्ति है. जो अपनी चिंता और ऐतराज को पहले से कहीं ज्यादा आक्रामक होकर दर्शाता है. ऐसे में किएर स्टार्मर का भारत को लेकर क्या रुख रहता है. भारत के लिहाज से ये अहम होगा.

लेबर पार्टी से एक और सांसद वरिंदर जूस ने भी जीत दर्ज की है. वो वॉल्वरहैम्प्टन वेस्ट से सांसद हैं. जूस के साथ-साथ कौर पर खालिस्तानी समूहों से संबंध रखने का आरोप है. उन्होंने लाभ सिंह और सुखदेव सिंह बब्बर जैसे अलगाववादियों की एक गैलरी के सामने स्टार्मर के साथ पोज़ दिया था. 

लेबर पार्टी में भारत विरोधी सांसदों की भरमार

तो लेबर पार्टी में ऐसे सांसदों की भरमार है. जो भारत विरोधी हैं. इसके बावजूद ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और किएर स्टार्मर ने उनके लिए प्रचार किया. इसीलिए सवाल उठ रहा है कि क्या ब्रिटेन में हुआ सत्ता परिवर्तन भारत से पक्ष में साबित होगा या फिर अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ब्रिटेन में भारत के खिलाफ जहर उगलने वालों को खुली छूट मिल जाएगी?

ब्रिटेन में बनने वाली नई सरकार का कश्मीर को लेकर क्या रुख रहता है. इस पर भी दोनों देशों के रिश्ते काफी कुछ निर्भर करेंगे. लेबर पार्टी कश्मीर पर भारत विरोधी रुख अपनाती आई है. पार्टी कश्मीरियों के लिए आत्मनिर्णय के आह्वान का समर्थन करती रही है. अब सवाल ये है कि क्या किएर स्टार्मर अपनी पार्टी की इस भूल को सुधारेंगे?

हारने के बाद उड़ रहा सुनक का मजाक

ब्रिटेन में किएर स्टार्मर की जय-जयकार हो रही है तो वहीं ऋषि सुनक का मजाक उड़ाया जा रहा है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने वाले ऋषि सुनक की हार के बाद भी हो रही आलोचना किसी को भी चौंका सकती है. जब ऋषि सुनक अपनी हार पर बोल रहे थे. इसी दौरान एक शख्स L यानी लूजर का साइन लेकर उनके पीछे खड़ा हो गया. ये शख्स निको ओमिलाना था, जो ब्रिटिश चुनावों में सुनक के सामने खड़ा था लेकिन चुनाव हार गया.

बावजूद इसके ये ऋषि सुनक का मजाक उड़ाने के लिए इस तरह से उनके पीछे खड़ा हो गया. हालांकि ये शख्स कैमरे के फ्रेम में न आए इसके लिए कैमरामैन ने काफी मशक्कत की लेकिन ये तस्वीर ब्रिटिश चुनाव की सबसे चर्चित तस्वीर बन गई. ये वही ऋषि सुनक हैं, जिनके कार्यकाल में भारत और ब्रिटेन के रिश्तों ने नई उड़ान भरी. संबंध मजबूत हुए और उसमें सुधार हुआ.

कश्मीर मुद्दे पर लेबर पार्टी का रुख भारत विरोधी

माना जाता है कि कंजर्वेटिव पार्टी के सत्ता में आने के बाद से भारत और ब्रिटेन के रिश्ते मजबूत हुए. खासकर बोरिस जॉनसन के कार्यकाल में भारत और ब्रिटेन के रिश्तों में ऊर्जा आई. साल 2022 में द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक मजबूत किया गया. लेकिन स्टार्मर लेबर पार्टी से हैं. जिनका रुख ऐतिहासिक तौर पर भारत को लेकर नरम नहीं माना जाता. लेबर पार्टी कश्मीर मुद्दे पर भारत विरोधी रुख अपनाती आई है. 

पार्टी कश्मीरियों के लिए आत्मनिर्णय के आह्वान का समर्थन करती रही है. खास तौर पर साल 2019 में जेरेमी कॉर्बिन के नेतृत्व में, लेबर ने अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को कश्मीर में प्रवेश करने की वकालत करते हुए एक आपातकालीन प्रस्ताव पारित किया था. इस प्रस्ताव में घोषणा की गई थी कि कश्मीर में मानवीय संकट पैदा हो गया है. प्रस्ताव में इस बात को भी बहुत ज़ोर दिया गया था कि कश्मीर को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जाना चाहिए. भारत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था. लेबर पार्टी के कॉर्बिन से भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित परमाणु तनाव को रोकने के लिए मध्यस्थता की सुविधा और शांति बहाल करने के लिए दोनों देशों के उच्चायुक्तों के साथ जुड़ने का भी आग्रह किया गया. 

किएर ने किया भारत के साथ रिश्ते सुधारने का वादा

कश्मीर को लेकर जर्मी कोर्बिन से जुड़ी ये बात पुरानी हो चुकी है. स्टार्मर ने लेबर पार्टी को पूरी तरह से बदल डाला है. 4 साल पहले लेबर पार्टी के नेता के तौर पर किएर स्टार्मर सफाई दे चुके हैं कि कश्मीर, भारत और पाकिस्तान का आपसी मसला है. यही नहीं किएर स्टार्मर जनता से भारत के साथ रिश्ते सुधारने का वादा करके सत्ता में आए हैं.

लेबर पार्टी पारंपरिक रूप से विचारधारा पर आधारित विदेश नीति पर चलती रही है. मानव अधिकारों के रिकॉर्ड लेकर लेबर पार्टी अक्सर भारत और दूसरे देशों की आलोचना करती रही है. भारत की सरकार ने इसे कभी नहीं पसंद किया है. एक और मुद्दा ब्रिटेन आकर बसने वाले भारतीय कामगारों को वर्क परमिट जारी करने का भी है. लेबर पार्टी का घोषित लक्ष्य ये है कि वो वैध प्रवासियों की संख्या को कम करेगी और अवैध प्रवासियों को ब्रिटेन में दाखिल होने से रोकेगी.

व्यवहारिक विदेश नीति का दिलाना होगा भरोसा

अगर लेबर पार्टी की सरकार भारत के साथ रिश्ते सुधारने को अपने एजेंडे का हिस्सा बनाती है, तो किएर स्टार्मर के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तखत करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी. जिसका आगाज दोनों देशों के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है.

तो साफ है कि अगर किएर स्टार्मर, भारत के साथ अच्छे रिश्ते कायम करना चाहते हैं, तो फिर उनको भारत सरकार को ये यकीन दिलाना होगा कि वो ज्यादा व्यवहारिक विदेश नीति पर चलेंगे. अब ये देखना होगा कि ब्रिटेन की नई सरकार इन दोनों के बीच किस तरह संतुलन बनाती है.

आसान नहीं होगी किएर स्टार्मर की राह

ब्रिटेन की जो आज हालत है उसे देखते हुए किएर स्टार्मर की राह आसान नहीं है. बड़ी बात ये है कि पिछली बार की तरह इस बार भी ब्रिटेन के चुनाव में भारतवंशियों का बोलबाला है. लेबर और कंजर्वेजिव पार्टी, दोनों दल से बड़ी संख्या में भारतवंशी जीतकर आए हैं.

ऋषि सुनक भले ही चले गए हों. लेकिन इस बार पिछली बार से ज्यादा भारतवंशी ब्रिटिश संसद पहुंचे हैं. इस चुनाव में ब्रिटेन में 650 सीटों पर 107 भारतीयों ने अपनी किस्मत आजमाई थी जिसमें से कई चेहरे जीतने में कामयाब हो गए हैं. बड़ी बात ये है कि कोई भी पार्टी हो जीतने वालों में भारतीयों का दबदबा है.

दोनों पार्टियों में भारतवंशियों का दबदबा

ऋषि सुनक की पार्टी भले ही चुनाव हार गई हो लेकिन वो कड़े मुकाबले में उत्तरी इंग्लैंड से चुनाव जीत गए. लेबर पार्टी के सदस्य कनिष्क नारायण ने ब्रिटेन आम चुनाव में जीत हासिल की है. कनिष्क नारायण का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर में हुआ है. वो 12 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए यूके चले गए थे. उन्होंने ऑक्सफोर्ड और फिर स्टैनफोर्ड में पढ़ाई की है. कनिष्क सिविल सेवक रह चुके हैं. इसके अलावा उनके पास प्राइवेट सेक्टर में भी काम अनुभव है

कंजर्वेटिव पार्टी की बड़ी नेता सुएला ब्रेवरमैन वाटरलूविले से जीती हैं. गगन मोहिंद्र पंजाबी हिंदू फैमिली से हैं. वह कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य हैं. वह यूके जनरल इलेक्शन में साउथ वेस्ट हर्ट्स से चुनाव जीते हैं. उनके माता-पिता पंजाब से थे. गगन मोहिंद्र के जन्म से पहले ही वो यूके चले गए थे.

लेबर पार्टी के सदस्य नवेंदु मिश्रा ने स्टॉकपोर्ट सीट से जीत हासिल की है. उन्होंने 2019 के चुनावों में भी इस सीट पर परचम लहराया था. उनकी मां गोरखपुर से आती हैं, जबकि उनके पिता उत्तर प्रदेश के कानपुर से हैं. इस सीट पर 1992 से हर चुनाव में लेबर पार्टी के सांसद ने जीत दर्ज की है. इसके अलावा सतवीर कौर भी साउथैम्पटन टेस्ट से सांसद बनने वाली भारतवंशी हैं.

पिछली संसद में लेबर पार्टी के छह सांसद भारतीय मूल के थे. इस बार ये तादाद दो गुना बढ़ने की बात हो रही है. लेबर पार्टी में स्टार्मर के करीबियों को लगता है कि ब्रिटेन की ये राजनीतिक हकीकत दोनों देशों के रिश्तों में सुधार सुनिश्चित करेगी. 

शिल्पा शेट्टी ने भी किया प्रचार

कंजर्वेटिव पार्टी की शिवानी राजा लीसेस्टर ईस्ट से चुनाव जीती हैं. उन्होंने लेबर पार्टी के राजेश अग्रवाल और बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर पूर्व सांसद क्लाउड वेब्बे और कीथ वाज को हराया. बड़ी बात ये है कि लीसेस्टर ईस्ट से लेबर पार्टी पिछले 40 सालों से जीत रही थी. लेकिन इस बार देशभर में उसकी लहर के बावजूद शिवानी राजा ने अपनी पार्टी का परचम लहरा दिया.

लीसेस्टर ईस्ट में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं. इसलिए निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले कीथ वाज ने अपने प्रचार के लिए यहां बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी को बुलाया. शिल्पा शेट्टी ने यहां प्रचार किया. फिर भी वो शिवानी राजा को जीतने से नहीं रोक सकीं. 

ब्रिटेन के चुनाव में कितनी अहमियत रखते हैं भारतीय मूल के लोग?

ब्रिटेन के चुनावों में भारतीय मूल के लोग कितनी अहमियत रखते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि ऋषि सुनक की तरह किएर स्टार्मर भी चुनाव से पहले हिंदू मंदिर पहुंचे. उन्होंने लंदन के स्वामीनारायण मंदिर में जाकर दर्शन किए और जयकारा भी लगाया और कहा कि ब्रिटेन में हिंदूफोबिया के लिए कोई जगह नहीं है. 

साल 2021 की जनगणना के अनुसार ब्रिटेन में 10 लाख से ज्यादा हिंदू आबादी है. 2011 में ब्रिटेन की कुल जनसंख्या का डेढ़ फीसदी हिंदुओं का था. ये बढ़कर 1.7 फीसदी हो गया. वहां ईसाई और मुस्लिम के बाद हिंदू तीसरा सबसे बड़ा धर्म है.



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